शराब, सिगरेट तथा मादकद्रव्य पदार्थों का सेवन देह के लिये खतरनाक है पर हमारा मानना है कि राज्य को इन पर पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास नहीं करना चाहिये। इनके प्रयोग से मनुष्य शारीरिक, मानसिक तथा वैचारिक रूप से कमजोर होता है। उससे भी ज्यादा कड़ी बात तो यह है कि इनके नियमित सेवन करने वाले व्यक्तियों से समय पड़ने पर दृढ़ सहयोग की आशा भी करना मूर्खता है चाहे वह कितने भी निजी क्यों न हों?
इसके बावजूद स्वतंत्र लेखक के रूप में हमारी मान्यता है कि राज्य प्रबंध को समाज सुधार के काम में ज्यादा हस्तक्षेप करने की बजाय उनकी ठेकेदारी करने वालो लोगों पर ही छोड़ना चाहिये। अपने जिस कृत्य से व्यक्ति अगर किसी की हानि नहीं कर रहा हो उसके विरुद्ध केवल इसलिये कार्यवाही नहीं की जा सकती कि वह अपना स्वास्थ्य बिगाड़ रहा है। शराब पर प्रतिबंध लगाना आसान है पर प्रश्न यह है कि क्या उसका राजकीय औचित्य कैसे प्रमाणित किया जायेगा-खासतौर से जब शराब से अधिक खतरनाक तंबाकू पाउच, अफीम तथा कोकीन अन्य खतरनाक मादकपदार्थ अवैध रूप से बिना राजकीय अनुमति के बिक रहे हैं और जिनका शिकार भारत का युवा वर्ग बुरी तरह से हो रहा है। हालांकि साधारण तंबाकू चुने से मिलाकर खाना स्वास्थ्य के लिये ठीक नहीं है पर इनका सेवन पारंपरिक रूप से होता है और इससे इतने लोग कैंसर का शिकार नहीं होते जितना पैक पाउच से होते हैं। यह पैक पाउच सामान्य तंबाकू से कई गुना खतरनाक है पर जब प्रतिबंध की बात आती है तो परंपरागत तंबाकू सेवन पर भी लागू करने की बात की जाती है ।
बहरहाल हम किसी प्रतिबंध का विरोध या समर्थन नहीं कर रहे। हम तो यहां तक कहते हैं कि व्यसन मनुष्य को अकर्मण्य तथा कायर बनाते हैं। हमारा प्रश्न तो यह है कि राज्य प्रबंध को समाज के सुचारु संचालन तक अपनी भूमिका रखना चाहिये। सुधार करने का जिम्मा समाज पर ही छोड़ना चाहिये। समय समय पर हमारे देश में समाज सुधारक अपना काम करते रहें हैं।
-------------------
No comments:
Post a Comment