Sunday, March 17, 2013

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-ज्ञानी जिसे सराहें वही काम करें (jis kam kee tarif karen vahi kaam karen-Kautilya ka arthshastra)

       प्रचार माध्यमों में-टीवी चैनल एवं समाचार पत्र पत्रिकाएँ-हमारे देश के प्रचलित  धर्मों के विषय पर लेकर अनेक प्रकार की बहस होती है। देश में कुछ बुद्धिमान इतने धर्मनिरपेक्ष हैं कि उनको भारतीय अध्यात्म में केवल जातिवाद और स्त्री शोषण के अलावा कुछ नज़र नहीं आता है।  यहां तक तो सब ठीक है पर धर्म को लेकर उनका नजरिया अजीब लगता है।  वह विश्व में अनेक धर्मो की उपस्थिति स्वीकार्य मानते हैं।  उनकी नजर में सभी धर्म समान हैं।  मतलब उनकी दृष्टि में धर्म केवल पूजा पद्धतियां ही हैं। यह अलग बात है की भारतीय धर्मों पर उनकी ड्रिसथी हमेशा वक्र ही रहती है।   जबकि  हमारा अध्यात्म दर्शन किसी विशेष पूजा पद्धति का न तो समर्थन करता है न विरोध।  वह तो नैतिक आचरण को ही धर्म मानता है।  मूल बात भी है कि हमारे प्राचीन धर्म तथा अध्यात्म ग्रंथों में धर्म को कोई नाम नहीं दिया गया है।  किसी व्यक्ति विशेष की सत्ता को स्वीकार न कर निरंकार कि उपासना को महत्व नहीं दिया गया है।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
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यमाय्र्याः क्रियामाणं हिः शंसत्यागगमवेदिनः।
स धम्माय विगर्हन्ति तमधम्र्मं परिचक्षते।।

                  हिन्दी में भावार्थ-शास्त्र के ज्ञाता श्रेष्ठ पुरुष जिस कार्य की प्रशंसा करें वही धर्म है और जिसकी निंदा करें वही अधर्म हैं।
       हम जब विदेशी विचाराधाराओं को देखते हैं तो वह पूजा पद्धतियों को ही धर्म माना जाता हैं।  इतना ही नहीं मानवीय जीवन में उनका हस्तक्षेप इतना है कि खानपान, रहन सहन और भाषा को भी धर्म से जोड़ दिया जाता है जबकि उनका आधार प्रकृति के अनुसार तय होता है। इसका सीधा मतलब यह है कि पाश्चात्य विचाराधारायें मनुष्य के बाह्य रूप के आधार पर धर्म का स्वरूप तय करती हैं और इस देह को धारण करने वाला आत्मा जिसे हम अध्यात्म भी कह सकते हैं कोई अर्थ नहीं रखता।  हमारा अध्यात्मिक ज्ञान देह और आत्म दोनों के सत्य को धारण करता है। इतना ही नहीं विदेशी  विचारधाराओं में पूजापद्धति से  मेल न रखने वाले व्यक्तियों को निंदनीय माना जाता है।  यही कारण है कि पूरे विश्व में धर्म के आधार पर वैमनस्य बढ़ता जा रहा हैं इसके विपरीत भारतीय दर्शन अध्यात्म ज्ञान को संचित करता है।  इसमें यह माना जाता है कि मनुष्य अपनी देह और उसमें विराजमान मन, बुद्धि के साथ अहंकार की प्रवृत्ति पर नियंत्रण कर एक सुविधाजनक जीवन बिता सकता है। किसी विशेष प्रकार की पूजा पद्धति अपनाने या वस्त्र पहनने की बात उनमें नहीं है।  भारतीय अध्यात्म दर्शन  मनुष्य को आत्म निर्माण के लिये प्रेरित करता है।  इसके विपरीत विदेशी विचाराधारा समाज निर्माण की बात करती है जबकि व्यक्ति निर्माण के बिना ऐसा करना कठिन है।  यही कारण है कि भारतीय अध्यात्म दर्शन वैज्ञानिक है।  कथित रूप से सभी धर्मों की बात कहना अपने आप में इसलिये अजीब लगता है क्योंकि धर्म का कोई नाम नहीं होता।  नैतिक आचरण में पवित्रता रखना, विचारों में शुद्धता तथा परोपकार की भावना ही धर्म का प्रमाण है। भारतीय अध्यात्म विद्वान इसी आधार पर धर्म और अधर्म का रूप तय करते हैं कि उसके नाम से पहचानते हैं।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 



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