Saturday, February 16, 2013

अथर्ववेद के आधार पर चिंत्तन-हृदय में सदैव पवित्र विचार रखें(thought on based on atharvaved-hridya mein hamesha pavitra vichar rakhen)

                 हमारी देह में स्थित इंद्रियों का अत्यंत महत्व हैं। इसमें कान, नाक, मुख, आंख तथा बुद्धि अत्यंत चंचल तथा विलासिताप्रिय होती हैं। उनमें उपभोग की प्रवृत्ति तो होती है पर रचनात्मक कार्यों के प्रति आलस्य का भाव रहता है।  इसे समझना जरूरी है। हम लोग भले ही यह सोचते हैं कि यह संसार ईश्वर के अनुसार चलता है पर सच यह है कि हमारे संकल्पों के अनुसार ही हमारा जीवन क्रम निर्मित होता है। जैसे हमारा विचार या संकल्प है वैसा ही हमारे सामने दृश्य घटित होता है। अगर दृश्य हमारे प्रतिकूल है तो हम दूसरों को दोष देते हैं। कभी भाग्य तो कभी भगवान की मर्जी बताकर आत्ममंथन से बचने का प्रयास करते हैं। कभी मित्र, कभी रिश्तेदार तो कभी परिवार के सदस्यों पर दोषारोपण कर यह मानते हैं कि हम और हमारा संकल्प तो हमेशा ही पवित्र रहता है। यह अज्ञान का प्रमाण है। आत्ममंथन की प्रक्रिया से दूर अज्ञानी लोग इसी कारण ही अपने जीवन में भारी कष्ट उठाते हैं।
अथर्ववेद में कहा गया है कि
----------------
सुश्रतौ कर्णो भद्रश्रतौ कर्णो भद्र श्लोकं श्रुयासम्।
‘‘हमारे दोनो कान उत्तम विचार सुने। कल्याणकारी वचन तथा कल्याणकारी प्रशंसा सुनने को मिले।’’
बृहसपतिर्म आत्मा तृमणा यनाम हृद्यः।।
‘‘हमारी आत्मा ज्ञान युक्त हो और मनुष्य में मनन करने वाला हृदय पवित्र हो।’’
                जब हम परमात्मा का स्मरण करते हैं तो उससे सांसरिक विषयों में सफलता की ही मांग करते हैं जबकि यह संसार कर्म और फल के सिद्धांत के आधार पर यंत्रवत चलता है। आम बोयेंगे तो आम पैदा होगा और बबूल बोने पर कांटों का झाड़ हमारे सामने खड़ा होगा। ज्ञानी लोग यह जानते हैं पर अज्ञानियों का झुंड इससे बेखबर होकर सुख में प्रसन्न हेता है और दुःख में विलाप करता है। अपने मुख से अच्छी वाणी बोलना चाहिए तो अपने कानों से ऐसी बातें सुनना चाहिए जो सुख देने के साथ ही मन स्वच्छ करने वाली हो। अपनी आंखों से किसी के संताप का दृश्य देखने की चाहत की बजाय प्रकृति और संसार के विषयों में विराजमान सौंदर्य की तरफ अपनी दृष्टि रखना चाहिए। दूसरों की निंदा या दोष का अध्ययन करने की बजाय सभी के गुण देखकर उसकी प्रशंसा करने से मन पवित्र होता है। कहने का अभिप्राय यह है कि जैसी कल्पना और हमारा विचार होता है वैसी ही हमारे सामने घटनायें होती हैं। इसलिये जहां तक हो सके अच्छा देखो, अच्छा खाओ और अच्छा सोचो।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
writer and editor-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep', Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की धर्म संदेश पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की अमृत संदेश-पत्रिका
6.दीपक भारतदीप की हिन्दी एक्सप्रेस-पत्रिका
7.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


इस लेखक की लोकप्रिय पत्रिकायें

आप इस ब्लॉग की कापी नहीं कर सकते

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

विशिष्ट पत्रिकायें

Blog Archive

stat counter

Labels