Saturday, August 11, 2012

विदुर नीति-अपराध करने वाला ही दंड का भागी बनता है (vidur niti-apradha aur insan

        मनुष्य अकेला  पैदा होता है और उसकी मृत्यु भी अकेले ही होती है।  परिवार, रिश्तेदार और संगी साथियों में न कोई साथ पैदा होता है न ही मरता है।  इस बात तो तत्वज्ञानी जानते हैं इसलिये अपने पूरे जीवन में वह हर स्थिति में सात्विक मार्ग पर ही चलते हैं जबकि सामान्य मनुष्य परिवार, रिश्तेदार तथा संगीसाथियों से मान पाने के लिये नित्य कर्म में इस तरह लिप्त रहता है जैसे कि वह वह उसके साथ ही पैदा हुए और आसमान तक उसके साथ चलेंगे।
विदुरनीति में कहा गया है कि
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एकः पापनि कुकते फलं भुङक्ते महाजनः।
भोक्तासे विप्रमुच्यन्ते कर्ता दोषेण लिप्यते।।
           हिन्दी में भावार्थ-मनुष्य स्वयं पाप करता है पर उसका लाभ अनेक लोग लेते हें।  जब दण्ड का समय होता है तो लाभ लेने वाले अन्य प्राणी तो बच जाते हैं जबकि पाप करने वाला स्वयं फंस जाता है।’’
         हमारे देश में भारी भ्रष्टाचार है।  इसके विरुद्ध अगर आंदोलन चल रहे हैं तो सरकारी प्रयास भी उसे रोकने के लिये होते हैं।  ऐसे में अनेक भ्रष्टाचारियों को जेल की कोठरियों में जाना पड़ता है जबकि उनके पद, पैसे और प्रतिष्ठा का उपयोग जिन लोगों ने किया होता है वह बाहर बैठे पूर्ववत आरामदायक जीवन बिताते हैं।  कहने को तो लोग कहते हैं कि वह अपने परिवार के लिये सब कर रहै हैं पर जब पापों के लिये दंड का समय आता है तो जेल की हवा परिवार को नहीं केवल पालनहार को ही मिलती है।  वैसे इस प्रसंग में महात्मा वाल्मीकि की कथा प्रचलित हैं।  वह उन लोगों के लिये बहुत बड़ा प्रमाण है जो अपराध या भ्रष्टाचार के लिये अपनी पारिवारिक स्थितियों को जिम्मेदार बताते हैं।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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