धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नोधर्मोहतोऽवधीत्।।
हिन्दी में भावार्थ-जो मनुष्य धर्म की हत्या करता है, धर्म उसका नाश करता है। इसलिये धर्म की रक्षा करना चाहिए ताकि हमारी रक्षा हो सके।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नोधर्मोहतोऽवधीत्।।
हिन्दी में भावार्थ-जो मनुष्य धर्म की हत्या करता है, धर्म उसका नाश करता है। इसलिये धर्म की रक्षा करना चाहिए ताकि हमारी रक्षा हो सके।
यद्राष्टं शूद्रभूयिष्ठं नास्तिकाक्रान्मद्धजम्।
विनश्यत्याशु तत्कृत्प्नं दुर्भिक्षव्याधिपीडितम्।।
हिन्दी में भावार्थ-जिस राज्य में आस्तिक विद्वानों के स्थान पर निम्न कोटि तथा नास्तिक लोगों की अधिकता के साथ उनका प्रभाव होता है वह शीघ्र ही भुखमरी तथा रोग आदि जैसी प्राकृतिक विपत्तियों का शिकार हो जाता है।
विनश्यत्याशु तत्कृत्प्नं दुर्भिक्षव्याधिपीडितम्।।
हिन्दी में भावार्थ-जिस राज्य में आस्तिक विद्वानों के स्थान पर निम्न कोटि तथा नास्तिक लोगों की अधिकता के साथ उनका प्रभाव होता है वह शीघ्र ही भुखमरी तथा रोग आदि जैसी प्राकृतिक विपत्तियों का शिकार हो जाता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या- धर्म की नाम से कोई पहचान नहीं है, बल्कि उसका आधार कर्म समूह है। अपना कर्म करते हुए परमात्मा की भक्ति निष्काम भाव से करना, गरीब, मजदूर तथा लाचार के प्रति सम्मान का भाव रखना, किसी भी काम को छोटा नहीं समझना, दूसरों पर निष्प्रयोजन दया करना तथा अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करते हुए जीवन व्यतीत करना वह लक्षण है जो धर्म के कर्मसमूह का मुख्य भाग है।
जो मनुष्य लोभ, लालच, क्रोध तथा अहंकार वश दूसरे व्यक्ति को कष्ट पहुंचाता है उसे अंततः उसका दुष्परिणाम भोगना पड़ता है। कहने का अभिप्राय यह है कि अगर हम सत्कर्म करते हुए अपना धर्म निभायेंगे तो वह हमारी रक्षा करेगा। इसके विपरीत अधर्म का मार्ग पकड़ेंगे तो वह तबाही की तरफ ले जायेगा। कहा जाता है कि ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ यह वाक्य धर्म का मूल मंत्र है तो अधर्म का भी। अगर सत्कर्म करेंगे तो वह धर्म होगा जिसका परिणाम अच्छा होगा और अगर दुष्कर्म करेंगे तो वह अधम्र है जिसकी सजा भी जरूर मिलेगी।
जिस समाज या राष्ट्र में धार्मिक विद्वानों को संरक्षण नहीं मिलता वहां लालची, लोभी तथा अहंकारी लोग अपना नियंत्रण कायम कर लेते हैं। नास्तिक लोग अपनी ताकत वहां दिखाते हैं। एक तरफ नास्तिक दुनियां में भगवान के न होने की बात करते हैं तो दूसरी तरफ वह कथित रूप से गरीब तथा बेबस लोगों के हित की बात करते हैं। उनका लक्ष्य इस आड़ में अपना प्रभाव करने के अलावा अन्य कुछ नहीं होता। जब वह भगवान को नहीं मानते तो फिर किसको खुश करने के लिये किसी भी प्रकार का सत्कर्म करते हैं। तय बात है कि उनका लक्ष्य केवल शक्ति प्राप्त कर उसका दुरुपयोग करना ही होता है। जहां धर्मज्ञ तथा सत्पुरुषों को हतोत्साहित कर अच्छे काम करने से उनको उन्मुख किया जाता है वहां नास्तिक लोग समाज हित का दिखावा करते हुए नियंत्रण कायम कर लेते हैं और फिर उनसे जीतना कठिन हो जाता है।
------------संकलक,लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anant-shabd.blogspot.com
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