Saturday, December 11, 2010

मनुस्मृति-प्रजा को डराने वाले अपराधियों को क्षमा नहीं करना चाहिए (manu smriti-praja aur apradhi)

साहसे वर्तमानं तु यो मर्थयति पार्थिवः।
सः विनाशं व्रजत्याशु विद्वेषं चाधिगच्छति।।
हिन्दी में भावार्थ-
जो राज्य प्रमुख दुस्साहस करने वाले व्यक्ति को क्षमा कर देता है वह स्वयं ही अतिशीघ्र नाश को प्राप्त होता है क्योंकि इससे राज्य की प्रजा में विद्रोह का भाव पैदा होता है।
न मित्रकारणांद्राजा विपुलाद्वाधनायामात्।
समुत्सृजेत्साहसिकान्सर्वभूतभयावहान्।।
हिन्दी में भावार्थ-
राज्य प्रमुख को चाहिए वह स्नेह अथवा लालचवश भी प्रजा में डर उत्पन्न करने वालो चोरों और अपराधियों को क्षमा न प्रदान करे।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुस्मृति का विरोध करते करते अनेक लोगों ने राजकाज में भागीदारी प्राप्त की मगर प्रजा को क्या दिया? सभी मुखौटों की तरह काम करते रहे। पूंजीपतियों और अपराध समूहों का आजकल इतना घालमेल हो गया है कि पता ही नहीं चलता कि राज्य वास्तव में उन लोगों से संचालित है जिनका चेहरा दिख रहा है या वह पुतले हैं जिनकी डोर कोई पीछे से खींच रहा है। दुस्साहस करने वाले अपराध्सियों पर हाथ डालना आसान नहीं रहा। प्रचार माध्यमों में घोटालों की चर्चा पर अगर विचार करें तो ऐसा लगता है कि राज्य का राजस्व लुट रहा है और जिम्मेदार लोग लाचार दिख रहे हैं। जो अनाज राज्य गरीबों के लिये सस्ते दामों पर बेचने के लिये भेजता है उसे राज्य के अधिकारी, कर्मचारी तथा व्यापारी मिलकर अपने कब्जे में ले लेते हैं। इधर ऐसे एक राज्य का गरीबों को बेचा जाने वा अनाज विदेशों में भेज दिया गया-इस घटना पर प्रचार माध्मयों के बहुत चर्चा है।
मनुस्मृति में केवल अपराधियों के लिये हीं कड़े दंड का प्रावधान नहीं वरन् उनकी अनदेखी करने वाले राज्य कर्मियों के लिये भी ऐसी ही व्यवस्था है। ऐसा लगता है कि राज्य कर्म से जुड़े कुछ तत्व मनुस्मृति की व्यवस्था और संदेशों से भय खाते हैं इसलिये ही निम्न जाति तथा स्त्रियों के प्रति कुछ संदेशों को लेकर दुष्प्रचार करते हैं ताकि कोई उनकी निष्कर्मता तथा लालच की वजह की जा रही लापरवाही पर लोग टिप्पणियां न करें। यही कारण है कि आज देश की व्यवस्था एकदम बुरी और दर्दनाक हो गयी है।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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Sunday, December 5, 2010

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-प्रमाद और अहंकार करने वाला शीघ्र नष्ट हो जाता है (kautilya ka arthshastra-pramad aur ahankar)

प्रकृतिव्यसननि भूतिकामः समुपेक्षेत नहि प्रमाददर्पात्।
प्रकृतिव्यवसनान्युपेक्षते यो चिरातं रिपवःपराभवन्ति।।
हिन्दी में भावार्थ-
विभूति की कामना से उत्पन्न प्रमाद और अहंकार की प्रकृति से उत्पन्न व्यसन की उपेक्षा न करें। प्रकृत्ति की व्यसनों की उपेक्षा करने वाला शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-प्रकृति के पंच तत्वों से बनी इस देह में मन, बुद्धि और अहंकार की प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती है। जिनके पास भौतिक उपलब्धि है वह उसके आकर्षण में बंधकर मतमस्त हो जाते हैं। दूसरे को गरीब या अल्पधनी मानकर उसका मज़ाक उड़ाते हैं। मज़ाक न उड़ाये तो भी शाब्दिक दया दिखाकर अपने मन को शांति देने का प्रयास करते हैं। दरअसल यह सब दूसरों से ही नहीं बल्कि अपने साथ भी प्रमाद करना ही है। इस संसार में भगवान की तरह माया का खेल भी निराला है। किसी के पास कम है तो किसी के पास ज्यादा है, इसमें मनुष्य की कोई भूमिका नहीं है। यह अलग बात है कि अज्ञानवश वह अपने को कर्ता मान लेता है। इसी कारण वह कभी प्रमाद तो कभी अहंकार के भाव से ग्रसित होकर व्यवहार करता है।
आज हम देश के हालात देखें तो यह बात समझ में आ जायेगी कि जिन लोगों के पास धन, प्रतिष्ठा और पद की उपलब्धि है वह दूसरे को अपने से हेय समझते हैं। नतीजा यह है कि आम इंसानों में उनके प्रति विद्रोह के बीज पड़ गये हैं। शिखर पुरुषों को यह भ्रम है कि आम आदमी उनसे जाति, धर्म, भाषा तथा क्षेत्र के बंटवारे के कारण उनसे जुड़े हैं जो कि उनके किराये के बुद्धिजीवी बनाकर रखते हैं। मगर सच तो यह है कि शिखर पुरुषों से अब किसी की सहानुभूति नहीं है। भले ही प्रचार माध्यम कितने भी दावा करें कि जनता प्रसिद्धि लोगों को देखना और सुनना चाहती है। अब तो हर आदमी यह जान गया है कि शिखर पर अब बिना ढोंग, पाखंड या बेईमानी के कोई नहीं पहुंच सकता। अगर ऐसा न होता तो देश के अनेक शिखर पुरुष अपने घरों के बाहर सुरक्षा उपाय नहीं करते। इतना ही नहीं अनेक तो राह चलते हुए भी सुरक्षा लेकर चलते हैं। इसका मतलब सीधा है कि अपने ही कारनामों को उनके अंदर भय व्याप्त है। गरीबों से भरे देश में सुरक्षा एक मुद्दा बन गयी है।
फिर अब शिखर पर भी झगड़े होने लगे हैं। एक जाता है तो दूसरा आ जाता है। यह अस्थिरता इसलिये हैं क्योंकि प्रमाद और अहंकार में लगे शिखर पुरुष जल्दी जल्दी अपना आकर्षण खो देते हैं। शिखर बैठकर वह अपने वैभव का प्रदर्शन कर वह एक दूसरे को प्रभावित तो कर सकते हैं पर आम आदमी को नहीं।
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Saturday, December 4, 2010

चाणक्य नीति-शास्त्र तथा उत्तम पुरुषों का मजाक उड़ाना गलत (chankya neeti in hindi-shastra aur uttam purush)

अन्यथा वेदपाण्डित्यं शास्त्रमाचारमन्यथा।
अन्यथा कुवचः शान्तं लोकाः क्लिश्यन्ति चान्यथा।।
हिन्दी में भावार्थ-
वेदों के तत्वज्ञान, शास्त्रों के विधान तथा उत्तम पुरुषों के चरित्र को मिथ्या कहने वाले लोग लोक परलोक दोनों में कष्ट उठाते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-देश में घोटालों, भ्रष्टाचार तथा अपराधों की बाढ़ आयी हुई है। टीवी चैनल देखने तथा अखबार पढ़ने से तो यही लगता है कि देश में नरक बन गया है। हैरानी की बात है कि अनेक विद्वान तथा समाज सेवक भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान छेड़े हुए हैं पर परिणाम शून्य दिखाई दे रहा है। इसका कारण यह है कि भारतीय अध्यात्म का वही लोग मज़ाक उड़ा रहे हैं जो आधुनिक शिक्षा से शिक्षित हैं और उनके पास ही समाज और राज्य संचालन का दायित्व भी है। वह अपने प्रति शिष्टाचार का भाव की अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत उपहारों का भ्रष्टाचार की परिधि में ही नहीं मानते।
कहीं राम पर तो कहीं कृष्ण के चरित्र पर आक्षेप होते हैं। वेदों का मज़ाक उड़ाया जाता है तो रामायण में भी अप्रमाणिक उत्तर रामायण के हिस्से लेकर समाज पर आक्षेप किये जाते हैं। पूरा भारतीय विद्वान जगत विचारधाराओं में बंटा हुआ है पर अपने ही अध्यात्म ज्ञान से अनभिज्ञ है। भारतीय अध्यात्म का मज़ाक उड़ाने वाले तो अज्ञानी है पर उनका प्रतिकार करने वाले भी तत्व ज्ञान नहीं जानते इसलिये बहस में कमजोर पड़ जाते हैं। यही कारण है कि कुछ अल्पज्ञानी गाहे बगाहे भारतीय अध्यात्म का मज़ाक उड़ाते हैं।
हालांकि हमारे देश में धर्म के प्रति जनमानस में गहरा लगाव है पर उनके कुछ कर्मकांड अंधविश्वास की परिधि में आते हैं, पर इसी आधार पर पूरे अध्यात्म दर्शन का मखौल उड़ाना भी कम अज्ञान का प्रमाण नहीं है। मनुस्मृति को लेकर अनेक लोग बवाल करते हैं पर वह कौन हैं? क्या उन्होंने राजकीय भ्रष्टाचार पर कभी मनु संदेशों का अध्ययन किया गया है। भ्रष्टाचारियों पर दंड के विधान का मनुस्मृति समर्थन करता है पर कभी उस पर नज़र नहीं डाली गयी। कहा जाता है कि मनुस्मृति में महिलाओं और निम्न जातियों के लिये अपमान जनक संदेश है
जबकि सच तो यह है कि मनु ने यह कहा है कि जिन घरों में महिलाओं का सम्मान नहीं होता उनका जल्दी विनाश हो जाता है। योग्यता के अनुसार सभी को सम्मान देने की बात भी उसमें कही गयी है। हम अगर आज के कथित आधुनिक समाज को देखें तो क्या पश्चिमी राह पर भी चलकर क्या औरतों और निम्न जातियों का सम्मान करने लायक बन पाया?
भ्रष्टाचार में डूबे लोग और उनकी अभिव्यक्ति को शाब्दिक रूप देने वाले लिपिक कभी भी भारतीय अध्यात्म का रहस्य नहीं समझ पाये। जिनका रोम रोम भ्र्रष्टाचार और अहंकार से भरा है वही भारतीय अध्यात्म पर प्रतिकूल टिप्पणियां करते हैं। वह नहीं जानते कि समय के अनुसार बदलने की प्रेरणा केवल भारतीय अध्यात्म दर्शन में ही मिलता है।
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