Tuesday, June 23, 2009

मनुस्मृति-व्यवहार में वस्तुओं का लेनदेन करना पड़ता है

आदानमप्रियकरं दानं च प्रियकारकम्।
अभीपिस्तानामर्थानां काले युक्तं प्रशस्यते।।
हिंदी में भावार्थ-
जब हमारी प्रिय वस्तुओं को कोई लेता है तब बहुत बुरा पर कोई दूसरा अपनी प्रिय वस्तु हमको देता है तो बहुत अच्छा लगता है। विशेष अवसरों पर इस प्रिय और अप्रिय लेनदेन का विचार छोड़कर व्यवहार करना ही पड़ता है।
हिरण्यभूम्रिसम्प्राप्त्या पार्थिवो न तथैश्वते।
यथा मित्र ध्रुवं लब्धवा कृशमप्यायाति क्षयम्।।
हिंदी में भावार्थ-
कोई भी आदमी किसी दूसरे से सोना या जमीन लेकर शक्तिशाली नहीं बन सकता जितना कि योग्य मित्र की संगत में होता है। मित्रता दुर्बल को भी शक्तिशाली बना देती है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हमारे पास ऐसी कुछ वस्तुऐं होती है जिनकी उपयोगिता के कारण हम उनसे बहुत प्यार करते हैं। वह पेन, किताब, गाड़ी या कोई अन्य वस्तु हो सकती है। अनेक ऐसी चीजें हैं जो समय पर पड़ने पर किसी अन्य द्वारा मांगे जाने पर बहुत बुरा लगता है हालांकि अपनी इच्छा के विरुद्ध उसे देते हैं पर दुःख होता है। इसके विपरीत जब कोई अन्य व्यक्ति अपनी प्रिय वस्तु हमारे मांगने पर देता है तब उसकी सदाशयता देखकर बहुत प्रसन्नता होती है। यह जीवन बहुत बड़ा है और यहां कोई चीज स्थिर नहीं है अतः भौतिक वस्तुओं के प्रति अधिक स्नेह न पालते हुए समय के अनुसार लेनदेन करने में संकोच नहीं करना चाहिये।

किसी से कोई वस्तु, सोना और जमीन उपहार में प्राप्त कर लेने से कोई ताकतवर नहीं हो जाता। उल्टे अधिक वस्तुओं के संग्रह से जहां घर में कबाड़ बढ़ता है वहीं सोने और जमीन की अधिक उपलब्धता से ठग और डकैतों की नजर आदमी पर पड़ी रहती है। लुटने या ठगने भय आदमी को मानसिक रूप कमजोर बना देता है। वह संकीर्ण दायरे में रहता है और समाज से उसका संपर्क कट जाता है।
जिस व्यक्ति का व्यवहार अच्छा है उसके मित्र अधिक होते हैं। यही मित्रता और व्यवहार आदमी को शक्तिशाली बनातर हैं। इसलिये भौतिक वस्तुओं, कीमती धातुओं और जमीन की बजाय समाज में अपने व्यवहार और मित्रता से सहृदय लोगों का संग्रह करना ही ठीक है क्योंकि उससे अपनी शक्ति और सम्मान बढ़ता है।
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