Sunday, January 18, 2009

कबीर के दोहे:खिचड़ी खाओ, स्वास्थ्य पाओ

खुश खाना है खीचड़ी, माहिं पड़ा टुक लौन
मांस पराया खाय के, गला कटावै कौन

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि उदर के लिये सबसे अच्छा भोजन खिचड़ी है जिसमें थोड़ा नमक डाला गया है। दूसरे जीव का मांस खाकर अपना गला कौन कटाये?

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-आदमी भोजन करने के विषय में केवल अपने जीभ के स्वाद का विचार करता है जबकि उस समय उसे केवल उसी वस्तु का भक्षण करने का प्रयास करना चाहिये जो पेट के लिये सुपाच्य हो। जब किसी का पेट खराब होता है तो चिकित्सक उसे आज भी खिचड़ी खाने की सलाह देते हैं। हमारे यहां तो अनेक लोग आज भी नियमित रूप से खिचड़ी का सेवन करते हैं। यहां बात केवल खिचड़ी की नहीं है बल्कि खाने में सादा भोजन लेने से भी है। तेज मसाले से बनी बाजार की चीजों का सेवन करने से जीभ को स्वाद तो बहुत मिलता है पर वह पेट के लिये हानिकारक होती हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी मानता है कि पेट की खराबी से ही अधिकतर बीमारियां होती हैंं। ऐसे में भोजन और पेय पदार्थों में वही वस्तुऐं ग्रहण करना चाहिये जो पेट के पाचन तंत्र पर दुष्प्रभाव न डालती हों।

कुछ चिकित्सा विज्ञानी मानते हैं कि किसी भी प्रकार का मांस मनुष्य शरीर के लिये हितकारक नहीं हैंं। मांस में किसी प्रकार की शक्ति होती है यह भी केवल भ्रम हैं। कहा जाता है जैसा आदमी खाता है वैसे ही उसके विचार होते हैं। इसलिये अपने विचार शुद्ध बने रहे और तो मन में कभी निराशा या दुःख के भाव नहीं आते। यह विचार करते अपने भोजन में सात्विक वस्तुऐं ही ग्रहण कराना चाहिये जिसमें मौसमी फल भी शामिल होते हैं।
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