1.बुद्धिमान मनुष्य की कहीं निंदा कर यह नहीं सोचना चाहिए कि अब निश्चित हो गये। बुद्धिमान की बाहेंे लंबी होती हैं और निंदा करने या सताये जाने वह उन्हीं बाहों से बदला लेता है।
2. जो विश्वास पात्र नहीं है उस पर तो कभी विश्वास करना ही नहीं चाहिए पर जिस पर किया जा सकता है उस पर भी अधिक विश्वास नहीं करना चाहिए।
3.वैसे तो सभी को ईष्यारहित, स्त्रियों की रक्षा करने वाला, संपत्ति का न्याय करने वाला, प्रियवचन बोलने वाला, स्वच्छ तथा स्त्रियों से मधुर बोलने वाला होना चाहिए पर किसी के वश में कभी नहीं होने से सभी को बचना चाहिए।यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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