रूप, कथा, पद, चारु, पट, कंचन, दोहा, लाल
ज्यों ज्यों निरखत सूक्ष्मगति , मोल रहीम बिसाल
कविवर रहीम कहते हैं की सुन्दरता, कथा, काव्य, आकर्षक वस्त्र सोना, दोहा और अपने पुत्र का जब सूक्ष्म रूप में देखते हैं तो उनका महत्व बढ़ जाता है।
लेखकीय अभिमत- रहीम जी ने हर बात गूढ़ अर्थों में अपनी बात कही है। यह संसार बहुत सुन्दर हैं अगर हम उसका आनंद उठाएं पर यह तभी संभव है जब उसे निर्लिप्त भाव से देखें। अगर हम इसे गहराई और सूक्ष्म रूप से देखें तो इसमें परमात्मा की कला के दर्शन होते हैं। हम इसे भोगने के साथ निहारें तो इसमें परमात्मा के सुंदर स्वरूप के दर्शन होंगे। सुन्दर वस्त्रों को देखते हैं और फिर ध्यान कर पृथ्वी पर फ़ैली हरियाली को देखें तो वह उसी सुन्दर वस्त्रों की जननी है। कहीं कविता सुनते हैं तो उसमें छिपे गूढ़ अर्थों को समझें तभी आन्नद आता है। अक्सर कवियों का मजाक उडाया जाता है पर वह अपने अनुभव से जो सृजन करते हैं उसकी अनुभूति वही कर सकता है जो उसे ध्यान से पढता और सुनता है। सोना और अपनी संतान को सूक्ष्म रूप में देखना चाहिऐ किकिस तरह परमात्मा ने इस संसार का सृजन किया है। हम केवल बाह्य रूप देखते हैं और अपना समझकर उसमें तल्लीन हो जाते हैं और यही हमारे दुख का कारण बनता है। हमें इस तरह देखना चाहिए कि यह परमात्मा के ही देन और रचना है इसी को सूक्ष्म रूप से देखना कहते हैं। इससे मन में निर्लिप्ता और निष्काम भाव उत्पन्न होता है जीवन का आनंद वास्तविक रूप में तभी महसूस किया जा सकता है।